Shree Yantra Baglamukhi
श्रीयंत्र की उपासना मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष सब कुछ प्रदान करती है। इसके बाद मनुष्य के जीवन में कोई और सुख बचा नहीं रहता है। श्रीयंत्र की साधना से मनुष्य को अष्ट सिद्धि व नौ निधियों की प्राप्ति होती है। श्री यंत्र की साधना से आर्थिक उन्नति होती है और व्यापार में सफलता मिलती है।
Description
श्रीयंत्र की कृपा से मनुष्य को धन, समृद्धि, यश, कीर्ति, ऐश्वर्य सहज रुप में मिल जाते हैं। रुके हुए सभी कार्य अनायास होने लगते हैं। श्री यंत्र की साधना-उपासना से साधक की शारीरिक और मानसिक शक्ति पुष्ट होती है।
श्रीयंत्र में समाहित हैं सभी महाशक्तियां
श्रीयंत्र की पूजा से दस महाविद्याओं की कृपा भी स्वयं ही प्राप्त हो जाती है. जिनकी अलग अलग उपासना अत्यंत कठिन और दुर्लभ है। श्रीयंत्र अपने आप में रहस्यपूर्ण है। यह सात त्रिकोणों से निर्मित है. मध्य बिन्दु-त्रिकोण के चतुर्दिक् अष्ट कोण हैं। उसके बाद दस कोण तथा सबसे ऊपर चतुर्दश कोण से यह श्रीयंत्र निर्मित होता है।
यंत्र ज्ञान में इसके बारे में स्पष्ट बताया गया है-
चतुर्भिः शिवचक्रे शक्ति चक्रे पंचाभिः।
नवचक्रे संसिद्धं श्रीचक्रं शिवयोर्वपुः॥
श्रीयंत्र के निर्माण का रहस्य
श्रीयंत्र के चारों तरफ तीन परिधियां खींची जाती हैं. ये अपने आप में तीन शक्तियों की स्थापना करते हैं। इसके नीचे षोडश(16) पद्मदल होते हैं तथा इन षोडश पद्मदल के भीतर अष्टदल का निर्माण होता है, जो कि अष्ट(8) लक्ष्मी का प्रतीक होता है।
अष्टदल के भीतर चतुर्दश (14) त्रिकोण निर्मित होते हैं, जो चतुर्दश शक्तियों के परिचायक हैं तथा इसके भीतर दस त्रिकोण खींचे जाते हैं। जो दस प्रकार की सम्पदा के प्रतीक हैं।
दस त्रिकोण के भीतर अष्ट त्रिकोण निर्मित होते हैं, जो अष्ट देवियों के सूचक कहे गए हैं। इसके भीतर त्रिकोण होता है, जो लक्ष्मी का त्रिकोण माना जाता है.
इस लक्ष्मी के त्रिकोण के भीतर एक बिन्दु निर्मित होता है, जो माँ भगवती जगदंबा पराम्बा बगलामुखी का प्रतीक है।